रानी लक्ष्मीबाई, भारत की वो वीरांगना जिसने अंग्रेजों का उनकी
औकात बता दी थी। झांसी के गणेश मंदिर में राजा गंगाधर राव से शादी के बाद
उनका नाम मणिकर्णिका से बदलकर लक्ष्मी बाई रख दिया गया और वह झांसी की
रानी बन गईं। 1613 में ओरछा के राजा वीर सिंह द्वारा बनवाए गए इस किले को
400 साल हो गए हैं। कई मराठा शासकों का झांसी में शासन रहा, लेकिन किले को
रानी के नाम से जाना जाता है। रानी की वीरता की कहानी किला सहेजे है।
अंग्रेजों से खुद को घिरता देख लक्ष्मी बाई ने दत्तक पुत्र दामोदर राव
को पीठ से बांध अपने ढाई हजार की कीमत के सफेद घोड़े पर बैठ किले की 100 फीट
ऊंची दीवार से छलांग लगाई थी। झांसी के पुरानी बजरिया स्थित गणेश मंदिर की
रानी लक्ष्मीबाई की जिंदगी में सबसे अहम जगह थी। 15 साल की उम्र (जानकारों
के मुताबिक रानी का जन्म 1827 है) में मनु कर्णिका की शादी इसी मंदिर में
झांसी के राजा गंगाधर राव से हुई थी। शादी के बाद इसी मंदिर में उनका नाम
मनु कर्णिका से लक्ष्मीबाई पड़ा।
राजा गंगाधर राव के निधन के बाद रानी गम में डूब गई थीं। गंगाधर राव का
क्रिया कर्म जहां किया गया था, उसी लक्ष्मीताल के किनारे रानी ने राजा की
याद में उनकी समाधि बनवाई थी। झांसी में रानी ने सिर्फ यही एक निर्माण
करवाया था। इसे गंगाधर राव की छतरी के नाम से जानते हैं। कहा जाता है कि
रानी लक्ष्मी बाई महा लक्ष्मी मंदिर में पूजा करने के जाती थीं, तब इसी
तालाब से होकर गुजरती थीं। यह झांसी का बड़ा जल श्रोत था। निधन के बाद
गंगाधर राव का अंतिम संस्कार भी यहीं किया गया, उन्हें श्रद्धांजलि देने
लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। आज इस तालाब की हालतखराब हो चुकी है।
इसे संवारने के लगातार कोशिश की जा रही है। झाँसी 1857 के संग्राम का
एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी
की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन
प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का
प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी
बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया
के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर
दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर
दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद
ब्रितानी सेना ने शहर पर क़बज़ा कर लिया।
परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भाग निकलने में सफल
हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली। तात्या
टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद
से ग्वालियर के एक किले पर क़बज़ा कर लिया।
18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से
लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की। लड़ाई की रिपोर्ट में
ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता,
चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे
अधिक खतरनाक भी थी।
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